पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्यजूतः) परमात्मा के अनुग्रहपात्र ईश्वरोपासक जन (गोमत्) गौ, मेषी आदि दुग्ध देनेवाले पशुओं से युक्त धन पाते हैं तथा (अश्ववत्) वहनसमर्थ गज आदि पशुओं से युक्त सम्पत्ति पाते हैं तथा (सुवीर्य्यम्) वीरतोपेत पुत्र पौत्रादिकों से वे युक्त होते हैं और इनके साथ (एधते) जगत् में प्रतिदिन बढ़ते जाते हैं और (पुरुस्पृहा) जिस धन को बहुत आदमी चाहते, वैसे (राया) धन से युक्त हो (सदा) सदा बढ़ते हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो ईश्वर के प्रेमी हैं, उनकी वृद्धि सदा होती है। इसमें कारण यह है कि वह भक्त सबसे प्रेम रखता है। सबके सुख-दुःख में सम्मिलित होता, सत्यता से वह अणुमात्र भी डिगता नहीं, अतः लोगों की सहानुभूति और ईश्वर की दया से वह प्रतिदिन बढ़ता जाता है ॥५॥